शतरंज
शतरंज... एक ऐसा खेल जो चुनौती से भरा है, एक ऐसा खेल जिसे हर कोई खेल नहीं सकता, इसे खेलने के लिए तेज़ दिमाग चाहिए। यह कोई साधारण खेल नहीं, भले ही इसमें शारीरिक ताकत ना लगती हो लेकिन फिर भी यह खेल अन्य कई खेलों से बढ़कर है।
दिमाग का खेल
इस खेल के लिए खिलाड़ी के तेज़ दिमाग के साथ उसकी एकाग्रता की भी जरूरत पड़ती है, क्योंकि उसका ध्यान दूसरी तरफ हुआ नहीं कि एक-एक करके उसके सभी खिलाड़ी मरते जाते हैं।
दिलचस्प खेल
राजा, रानी, घोड़े, हाथी, प्यादे... कुछ ऐसी ही हैं शतरंज की चालें। यह खेल अपने पाले में रखे राजा को बचाने और दूसरे के पाले में रखे राजा को हरानेके लिए खेला जाता है। वो भी शय और मात के साथ... इतना आसान नहीं है शतरंज का खेल जितना सुनने में लगता है।
जीत और हार का खेल
लेकिन क्या आप जानते हैं शतरंज का खेल पहली बार कहां खेला गया? इसे किसने बनाया और क्यों बनाया? इसे बनाने के पीछे बनाने वाले का मकसद क्या था? यह खेल अस्तित्व में कब आया और कैसे पूरे विश्व में पहुंचा? इन सभी सवालों का जवाब हम एक-एक करके आपको आगे की स्लाइड्स में जरूर देंगे।
सबसे पुराना दिमाग लगाने वाला खेल
लेकिन पहले एक सवाल... क्या आपको पता है कि शतरंज दुनिया का सबसे पुराना दिमाग लगाने वाला खेल है। यूं तो शारीरिक ऊर्जा का इस्तेमाल करके दुनिया में ऐसे कई प्राचीन खेल हैं। लेकिन शतरंज ऐसा सबसे पुराना खेल है जिसे एक जगह बैठकर अपने दिमाग की नसों पर ज़ोर देकर खेला जाता है।
शतरंज का आकार
शतरंज पर शोध कर चुके विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक ऐसा खेल है जो प्राचीन समय के लोगों की जिंदगी को दर्शाता है। इस शतरंज के प्यादे जिस बोर्ड पर चलते हैं उसका आकार। इस बोर्ड का चौरस आकार और उसमें भी काले और सफेद रंग के डिब्बे... यह सभी प्राचीन सभ्यता को कहीं ना कहीं दर्शाते हैं।
इतिहास
यदि हम पाश्चात्य देशों के इतिहास पर गौर करें तो शतरंज का खेल कम से कम 1500 वर्ष पुराना है। लेकिन भारत का इतिहास तो कुछ और ही कहता है। इसके मुताबिक शतरंज भारत में ही उत्पन्न हुआ। यह कोई विदेशी खेल नहीं, बल्कि भारत की धरती पर ही उजागर हुआ राजा-महाराजाओं का खेल है।
भारत में बना
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार शतरंज 6वीं शताब्दी में बनाया गया खेल है जो धीरे-धीरे भारत की सीमा को लांघता हुआ पारसी देशों तक पहुंचा। उसके बाद कुछ ही वर्षों में इस रोचक खेल ने विश्व भर में अपनी जगह बना ली।
गुप्त काल
कहते हैं कि गुप्त काल के समय पर ही शतरंज का अविष्कार किया गया। यदि आपको मालूम हो तो महाभारत काल में पासे के प्रयोग से खेल खेला जाता था। यह वही खेल था जिसकी मदद से कौरवों ने पाण्डवों से उनकी सारी सम्पत्ति छीन ली थी। साथ ही उनकी पत्नी द्रौपदी को भी बेइज्जत किया था।
पासों का खेल
पासों का यह खेल उस युग से होता हुआ गुप्त काल तक भी आया, लेकिन वह समय आ गया था जब राजा-महाराजा कुछ नया चाहते थे। क्योंकि पासों का यह खेल किस्मत पर निर्भर था। आपकी किस्मत हुई तो आप जीत जाएंगे, नहीं तो हार आपके द्वार आकर खड़ी हो जाएगी।
राजा चाहते थे कुछ नया
उस ज़माने में राजा हुआ करते थे, वे पासों के इस खेल का किस्मत पर निर्भर होने जैसा वजूद देखकर तंग आ गए थे और चाहते थे कि काश कोई ऐसा खेल हो जिसमें दिमाग का इस्तेमाल हो। जिसमें ना बल हो और ना ही किस्मत पर निर्भर होने जैसी बात, वरन् खिलाड़ी अपनी चतुराई से जीत हासिल करें।
चतुराई वाला खेल
एक ऐसा खेल जिसमें खिलाड़ी अपनी होशियारी का इस्तेमाल करें, उसकी चतुराई के सामने कोई खड़ा ना हो सके। बेशक वह शारीरिक रूप से कमज़ोर हो, लेकिन वह चतुर है और उसमें तेज़ दिमाग है और वही उसकी ताकत बने। उनकी इसी जिज्ञासा ने शतरंज जैसे खेल को जन्म दिया।
क्या था नाम?
तब शतरंज का नाम वह नहीं था जो हम सुनते आ रहे हैं, वरन् राजा ने इस खेल को चतुरंग का नाम प्रदान किया था। उस समय यह खेल एक बड़े से बोर्ड पर खेला जाता था जिसे वास्तु पुरुष मंडल कहते थे। इस बोर्ड को 8x8 के हिस्सों में बांटा हुआ था।
वास्तु पुरुष मंडल
कहते हैं वास्तु पुरुष मंडल को कुछ ऐसा आकार दिया गया था मानो पूरे ब्रह्मांड को आठ-आठ के हिस्सों में बांटकर उसमें शहरों को बसाया हो। यह काफी अद्भुत था...
बाद में बदल दिया
शायद इसी आकार से प्रेरणा लेकर बाद में शतरंज को एक बक्से में बनाने का ख्याल आया हो। लेकिन इस बदलाव के साथ ही चतुरंग नामक खेल का नाम भी बदलकर अष्टपद पढ़ गया था।
कुछ यूं फैला
यह खेल फिर 9वीं शताब्दी तक पश्चिमी यूरोप और रूस की ओर निकल पड़ा। और साल 1000 खत्म होने तक यह खेल पूरी तरह से यूरोप में अपनी जड़ें जमा चुका था।
13वीं शताब्दी
इसके बाद 10वीं शताब्दी तक यह खेल पेनिन्सुला के प्रांतों तक भी पहुंच गया और वह 13वीं शताब्दी का समय था जब आखिरकार यह खेल शतरंज के नाम से ही प्रसिद्ध हुआ।
इसके नाम में आए कई बदलाव
लेकिन क्या आप जानते हैं कि चतुरंग से लेकर शतरंज नाम मिलने तक ना केवल इस खेल के नाम बल्कि इसके नियमों में भी बड़े बदलाव आए। यह खेल जिन-जिन प्रांतों में गया, वहां के लोगों ने इसे नया नाम देने के साथ ही इसके नियमों में भी काफी फेरबदल किया।
अजीबोगरीब नाम
यह खेल जहां पारसी और अरब देशों में काफी घूमा, वहीं अंत में यह मुगलों की भी शान बना। उस समय स्पेन में जब शतरंज पहुंचा तो इसका नाम बदलकर ‘एजेडरेज़’ रख दिया गया। पुर्तगाल में इसे जादरेज़ के नाम से जाना गया।
यूनान में शतरंज
यूनान में शतरंज जात्रिकियो के नाम से प्रसिद्ध हुआ तो लेकिन दूसरी ओर यूरोप में इस खेल को उसी तरह से अपनाया गया जैसा कि पारसी देशों में खेला जाता था।
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