वित्तीय वर्ष 2017-18 इनकम टैक्स रिटर्न से जुड़ी पूरी जानकारी
टेक्स स्लैब-
250000/- = Nil
251000-500000 = 5%
500001-1000000= 20%
10लाख से अधिक =30%
*वेतन एवम् भत्ते जो आयकर के अंतर्गत है:-
*मूल वेतन
*महंगाई भत्ता
*विशेष भत्ता
*बोनस
*एरियर
*फ़ूड/मेस भत्ता
*हार्ड ड्यूटी
*आंशिक टेक्सबल भत्ते*
*चिकित्सा पुनर्भरण 15000/- वार्षिक तक
*मकान किराया भत्ता(HRA)
*ट्रांसपोर्ट भत्ता 1600 महीना तक
*LTA
*टेक्स फ्री भत्ते*
*Newspaper/Journal All. Up to 12000/-par year
*टेलीफोन/मोबाइल भत्ता ऑफिस काम आने वाला
भोजन कूपन 2200 हर माह
👉 *इनकम टैक्स रिटर्न*
देश के हर टैक्सपेयर की यह ड्यूटी है कि वह इनकम टैक्स विभाग को हर फाइनैंशल इयर के अंत में उस फाइनैंशल इयर में हुई आमदनी का ब्योरा दे। यह ब्योरा उसे विभाग द्वारा तय फॉर्म में भरकर देना होता है। इस *फॉर्म के जरिये दी गई पूरी जानकारी इनकम टैक्स रिटर्न* कहलाती है।
👉 *फाइनैंशल इयर*
1 अप्रैल से 31 मार्च तक के समय को फाइनैंशल इयर कहा जाता है। उदाहरण के तौर पर *1 अप्रैल 2017 से 31 मार्च 2018 तक* के समय को फाइनैंशल इयर 2017-18 कहा जाएगा।
👉 *असेसमेंट इयर*
असेसमेंट इयर फाइनैंशल इयर से आगे वाला साल होता है, जिस साल उस फाइनैंशल इयर के टैक्स संबंधी मामलों का आकलन किया जाता है। मसलन *फाइनैंशल इयर 2017-18के लिए असेसमेंट इयर 2018-19* होगा
👉 *डिडक्शंस*
विभिन्न तरह के इन्वेस्टमेंट पर इनकम टैक्स विभाग की ओर से आपको टैक्स में छूट मिलती है। ये कई तरह के आइटम होते हैं, जहां *इन्वेस्टमेंट करके टैक्स में छूट हासिल की जा सकती है। मसलन सेक्शन 80सी से सेक्शन 80यू तक जो भी आइटम हैं, उन्हें डिडक्शन के तहत* माना जाता है।
👉 *ग्रॉस इनकम*
टैक्स फ्री आमदनी और भत्तों को छोड़कर आपकी साल की कुल आमदनी जो भी है, उसे ग्रॉस इनकम कहा जाता है। *ग्रॉस इनकम हमेशा 80 सी से 80 यू तक मिलने वाले डिडक्शन से पहले वाली इनकम* होती है।
👉 *टैक्सेबल इनकम*
ग्रॉस इनकम में से *80 सी से 80 यू तक मिलने वाले डिडक्शन क्लेम कर लेने के बाद जो इनकम आती है, उसे टैक्सेबल इनकम कहते हैं।* यानी डिडक्शन से पहले वाली इनकम ग्रॉस इनकम और डिडक्शन के बाद वाली इनकम को टैक्सेबल इनकम कहते हैं।
👉 *टीडीएस*
आपकी जो भी आमदनी होती है, सरकार उस पर टैक्स काटती है। इसे *टैक्स डिडक्टेड ऐट सोर्स* कहा जाता है। जो संस्था आपको पेमेंट कर रही है, वही टैक्स की इस रकम को काटकर बाकी रकम आपको पे करती है। टीडीएस काटने का काम एंम्प्लॉयर या पेमेंट करने वाली संस्था का है।
👉 *इनकम टैक्स रिफंड*
अगर किसी टैक्सपेयर ने सरकार को ज्यादा टैक्स दे दिया है, तो वह उस रकम को सरकार से वापस ले सकता है। इस वापस आई रकम को ही रिफंड कहा जाता है। *टैक्स रिटर्न भरकर आप इस एक्स्ट्रा रकम को इनकम टैक्स विभाग से क्लेम करते हैं। इसके बाद रिफंड की यह रकम आपको इनकम टैक्स विभाग की ओर से आपके अकाउंट में* भेज दी जाती है।
👉 *फॉर्म 16*
*_अगर आप कहीं नौकरी करते हैं तो आपका एम्प्लॉयर आपको एक फॉर्म 16 देता है। यह फॉर्म अब तक आपके एम्प्लॉयर ने आपको दे दिया होगा। यह इस बात को साबित करता है कि एम्प्लॉयर ने आपकी सैलरी से अगर टैक्स बनता है, तो टीडीएस काटा है। इनकम टैक्स के नियमों के मुताबिक हर एम्प्लॉयर के लिए जरूरी है कि वह फॉर्म 16 अपने कर्मचारियों को दे। अगर आपका एम्प्लॉयर आपको यह फॉर्म नहीं दे रहा है तो आप इसकी रिक्वेस्ट उसे रजिस्टर्ड डाक से भेजें और इसका सबूत अपने पास रखें। इनकम टैक्स विभाग के पूछताछ करने पर यह सबूत दिखाया जा सकता है।_*
👉 *फॉर्म 16 A*
अगर *सैलरी के साथ-साथ दूसरे जरियों से भी आपको आमदनी हुई हो और उस पर टीडीएस कट चुका हो तो उस संस्था से भी टीडीएस सर्टिफिकेट ले लें। इस सर्टिफिकेट को ही फॉर्म 16ए* कहा जाता है। यहां हम रेंटल इनकम, शेयर, एफडी वगैरह से होने वाली इनकम की बात कर रहे हैं। एफडी के मामले में आपका बैंक आपको यह सर्टिफिकेट देगा।
👉 *फॉर्म 26 AS*
फॉर्म *26एएस एक कंसॉलिडेटेड टैक्स स्टेटमेंट* है। इसमें खासतौर से तीन तरह के ब्योरे होते हैं। पहला टीडीएस का ब्योरा, दूसरा टैक्स कलेक्टेड ऐट सोर्स का ब्योरा और तीसरा टैक्सपेयर द्वारा बैंक में जमा कराया गया एडवांस टैक्स/सेल्फ असेसमेंट टैक्स का ब्योरा। फॉर्म 26 एएस से आप यह पता लगा सकते हैं कि कंपनी या बैंक ने आपका जो टीडीएस काटा है, उसे सरकार के पास जमा कराया भी है या नहीं। इस टीडीएस का ब्योरा आप दो तरह से देख सकते हैं।
पहले incometaxindiaefiling.gov.in* पर जाएं। अगर आप पिछले सालों में रिटर्न भर चुके हैं तो आपके पास यूजर नेम और पासवर्ड होगा। इसी से लॉग-इन करें। अगर पहली बार रिटर्न भर रहे हैं तो Register Yourself पर जाकर रजिस्टर करें। यूजर नेम आपका पैन नंबर होता है और पासवर्ड आप खुद जेनरेट करेंगे। लॉग-इन करने के बाद View Form 26 AS पर क्लिक करें। अगर आप नेट बैंकिंग इस्तेमाल करते हैं तो बैंक की वेबसाइट पर जाकर View Your Tax Credit पर क्लिक करके फॉर्म 26 एएस देख सकते हैं, लेकिन इससे केवल उस बैंक में चल रही आपकी एफडी, सेविंग्स अकाउंट पर ब्याज आदि का ही पता चलेगा।
*7 टॉप गलतियां जो हम कर जाते हैं...* 🤔
*1. रिटर्न फाइल न करना*
चूंकि *आप पर टैक्स की कोई देनदारी नहीं है, इसलिए आपको रिटर्न भरने की जरूरत नहीं है, अगर आपकी ऐसी सोच है तो आप गलत हैं।* रिटर्न भरने से आजादी सिर्फ उन लोगों को है, जिनकी सालाना ग्रॉस इनकम बेसिक एग्जेंप्शन लेवल से कम है। 60 साल से कम उम्र के लोगों के लिए यह सीमा ढाई लाख रुपये है, 60 साल से ज्यादा और 80 साल से कम उम्र के बुजुर्गों के लिए 3 लाख रुपये है और 80 साल या उससे ज्यादा उम्र के लोगों के लिए 5 लाख रुपये है। जिस किसी की भी आमदनी इससे ज्यादा है, उसे रिटर्न भरना अनिवार्य है।
*2. गलत फॉर्म चुनना*
किसे कौन-सा फॉर्म भरना है, इसके लिए बाकायदा नियम हैं। कई बार लोग गलत फॉर्म का चुनाव कर लेते हैं। अपनी *कैटिगरी के हिसाब से सही रिटर्न फॉर्म चुनें* और उसे ही भरें।
*3. खाली फॉर्म पर साइन*
जो लोग किसी एजेंट के जरिए रिटर्न भरते हैं, वे अक्सर खाली रिटर्न फॉर्म पर दस्तखत करके एजेंट को दे देते हैं। एजेंट बाद में उस फॉर्म को भरकर जमा कर देता है। खाली फॉर्म पर दस्तखत न करें। फॉर्म भरने में एजेंट से गलती हो गई तो आपको दिक्कत होगी। *भरे हुए रिटर्न फॉर्म पर एक नजर डाल लेने के बाद ही उस पर साइन* करें।
*4. नंबरों पर ध्यान*
रिटर्न फॉर्म में पैन, आईएफएस कोड, अकाउंट नंबर, एम्प्लॉयर का टैन जैसी कुछ फिगर्स ऐसी होती है जिन्हें भरते वक्त गलती होने की आशंका रहती है। इन नंबरों को ध्यान से भरें। फर्ज करें *अगर आपने अपने पैन की एक डिजिट भी गलत भर दी, तो इनकम टैक्स विभाग आपके ऊपर जुर्माना* लगा सकता है।
*5. फॉर्म 16 न लेना*
अगर आपने फाइनैंशल इयर के दौरान नौकरी बदली है तो अपने दोनों एम्प्लॉयर से *फॉर्म 16 जरूर ले लें।* अपने पहले एम्प्लॉयर के साथ काम के दौरान की गई सेविंग्स और उससे हुई आमदनी अगर आपने अपने नए एम्प्लॉयर को नहीं बताई है तो हो सकता है, वह कम टैक्स काटे और बाद में आपको कम काटा गया टैक्स ब्याज सहित भरना पड़े।
*6. ब्याज न बताना*
कई बार लोग फिक्स्ड डिपॉजिट और सेविंग्स अकाउंट पर मिलने वाले ब्याज का जिक्र अपने इनकम टैक्स रिटर्न में नहीं करते हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि बैंक ने टीडीएस तो काट ही लिया है इसलिए उस आमदनी को आईटीआर में दिखाने की अब उन्हें कोई जरूरत ही नहीं रह गई है। यह धारणा पूरी तरह से गलत है।
*7. इनकम की क्लबिंग को नजरंदाज करना*
कई लोग पत्नी और बच्चों के नाम से भी इन्वेस्टमेंट करते हैं। आप पत्नी को कितनी भी रकम दे सकते हैं, लेकिन गिफ्ट की गई रकम को आप इन्वेस्ट करते हैं तो सेक्शन 64 सामने आ जाता है। इसके मुताबिक, गिफ्ट की गई रकम से कोई आमदनी होती है तो वह आपकी टैक्सेबल इनकम में जोड़ी जाएगी। इससे फर्क नहीं पड़ता कि पार्टनर को आमदनी होती है या नहीं।
👉🏻FY 2017-18 मैं टेक्सबल आय होने पर भी return नहीं भरने पर दिनांक 31.07.18 से 31.12.18 तक 5000/- और 31.12.18 से 31.12.19 तक 10000/-जुमार्ना तय किया है।
*डिडक्शंस की लिस्ट* 🚩
_80 सी, 80 सीसीसी और 80 सीसीडी में इन आइटम में छूट मिलती है। इसकी सीमा फाइनैंशल इयर 2017-18 के लिए 1.5 लाख रुपये है।_
पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (PPF)
एंप्लॉयी प्रॉविडेंट फंड (EPF)
पांच साल की बैंक एफडी
दो बच्चों की ट्यूशन फीस
सीनियर सिटिजंस सेविंग्स स्कीम
होम लोन के रीपेमेंट में प्रिंसिपल अमाउंट के तौर पर दी जाने वाली रकम
लाइफ इंशूरंस पॉलिसी प्रीमियम जो आप चुकाते हैं।
NSC viii इश्यू
इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम यानी ELSS
सुकन्या समृद्धि योजना में किया गया इन्वेस्टमेंट
*डेढ़ लाख के अलावा*
इन आइटमों में भी छूट मिलती है, जो 1.5 लाख की सीमा से अलग है:
80 D : हेल्थ इंशूरंस पॉलिसी का प्रीमियम 15 हजार की सीमा तक।
24 b : होम लोन के रीपेमेंट में ब्याज की रकम पर। इसकी सीमा दो लाख रुपये है।
★80 E : हायर स्टडीज के लिए लिए गए एजुकेशन लोन के रीपेमेंट में ब्याज की रकम पर। कोई सीमा नहीं।
★80 G : किसी संस्था को दी जाने वाली डोनेशन।
★U/S 87 के तहत् 3.50 लाख तक टेक्सेबल वार्षिक आय पर 2500/-की छूट का प्रावधान किया है।
टेक्स स्लैब-
250000/- = Nil
251000-500000 = 5%
500001-1000000= 20%
10लाख से अधिक =30%
*वेतन एवम् भत्ते जो आयकर के अंतर्गत है:-
*मूल वेतन
*महंगाई भत्ता
*विशेष भत्ता
*बोनस
*एरियर
*फ़ूड/मेस भत्ता
*हार्ड ड्यूटी
*आंशिक टेक्सबल भत्ते*
*चिकित्सा पुनर्भरण 15000/- वार्षिक तक
*मकान किराया भत्ता(HRA)
*ट्रांसपोर्ट भत्ता 1600 महीना तक
*LTA
*टेक्स फ्री भत्ते*
*Newspaper/Journal All. Up to 12000/-par year
*टेलीफोन/मोबाइल भत्ता ऑफिस काम आने वाला
भोजन कूपन 2200 हर माह
👉 *इनकम टैक्स रिटर्न*
देश के हर टैक्सपेयर की यह ड्यूटी है कि वह इनकम टैक्स विभाग को हर फाइनैंशल इयर के अंत में उस फाइनैंशल इयर में हुई आमदनी का ब्योरा दे। यह ब्योरा उसे विभाग द्वारा तय फॉर्म में भरकर देना होता है। इस *फॉर्म के जरिये दी गई पूरी जानकारी इनकम टैक्स रिटर्न* कहलाती है।
👉 *फाइनैंशल इयर*
1 अप्रैल से 31 मार्च तक के समय को फाइनैंशल इयर कहा जाता है। उदाहरण के तौर पर *1 अप्रैल 2017 से 31 मार्च 2018 तक* के समय को फाइनैंशल इयर 2017-18 कहा जाएगा।
👉 *असेसमेंट इयर*
असेसमेंट इयर फाइनैंशल इयर से आगे वाला साल होता है, जिस साल उस फाइनैंशल इयर के टैक्स संबंधी मामलों का आकलन किया जाता है। मसलन *फाइनैंशल इयर 2017-18के लिए असेसमेंट इयर 2018-19* होगा
👉 *डिडक्शंस*
विभिन्न तरह के इन्वेस्टमेंट पर इनकम टैक्स विभाग की ओर से आपको टैक्स में छूट मिलती है। ये कई तरह के आइटम होते हैं, जहां *इन्वेस्टमेंट करके टैक्स में छूट हासिल की जा सकती है। मसलन सेक्शन 80सी से सेक्शन 80यू तक जो भी आइटम हैं, उन्हें डिडक्शन के तहत* माना जाता है।
👉 *ग्रॉस इनकम*
टैक्स फ्री आमदनी और भत्तों को छोड़कर आपकी साल की कुल आमदनी जो भी है, उसे ग्रॉस इनकम कहा जाता है। *ग्रॉस इनकम हमेशा 80 सी से 80 यू तक मिलने वाले डिडक्शन से पहले वाली इनकम* होती है।
👉 *टैक्सेबल इनकम*
ग्रॉस इनकम में से *80 सी से 80 यू तक मिलने वाले डिडक्शन क्लेम कर लेने के बाद जो इनकम आती है, उसे टैक्सेबल इनकम कहते हैं।* यानी डिडक्शन से पहले वाली इनकम ग्रॉस इनकम और डिडक्शन के बाद वाली इनकम को टैक्सेबल इनकम कहते हैं।
👉 *टीडीएस*
आपकी जो भी आमदनी होती है, सरकार उस पर टैक्स काटती है। इसे *टैक्स डिडक्टेड ऐट सोर्स* कहा जाता है। जो संस्था आपको पेमेंट कर रही है, वही टैक्स की इस रकम को काटकर बाकी रकम आपको पे करती है। टीडीएस काटने का काम एंम्प्लॉयर या पेमेंट करने वाली संस्था का है।
👉 *इनकम टैक्स रिफंड*
अगर किसी टैक्सपेयर ने सरकार को ज्यादा टैक्स दे दिया है, तो वह उस रकम को सरकार से वापस ले सकता है। इस वापस आई रकम को ही रिफंड कहा जाता है। *टैक्स रिटर्न भरकर आप इस एक्स्ट्रा रकम को इनकम टैक्स विभाग से क्लेम करते हैं। इसके बाद रिफंड की यह रकम आपको इनकम टैक्स विभाग की ओर से आपके अकाउंट में* भेज दी जाती है।
👉 *फॉर्म 16*
*_अगर आप कहीं नौकरी करते हैं तो आपका एम्प्लॉयर आपको एक फॉर्म 16 देता है। यह फॉर्म अब तक आपके एम्प्लॉयर ने आपको दे दिया होगा। यह इस बात को साबित करता है कि एम्प्लॉयर ने आपकी सैलरी से अगर टैक्स बनता है, तो टीडीएस काटा है। इनकम टैक्स के नियमों के मुताबिक हर एम्प्लॉयर के लिए जरूरी है कि वह फॉर्म 16 अपने कर्मचारियों को दे। अगर आपका एम्प्लॉयर आपको यह फॉर्म नहीं दे रहा है तो आप इसकी रिक्वेस्ट उसे रजिस्टर्ड डाक से भेजें और इसका सबूत अपने पास रखें। इनकम टैक्स विभाग के पूछताछ करने पर यह सबूत दिखाया जा सकता है।_*
👉 *फॉर्म 16 A*
अगर *सैलरी के साथ-साथ दूसरे जरियों से भी आपको आमदनी हुई हो और उस पर टीडीएस कट चुका हो तो उस संस्था से भी टीडीएस सर्टिफिकेट ले लें। इस सर्टिफिकेट को ही फॉर्म 16ए* कहा जाता है। यहां हम रेंटल इनकम, शेयर, एफडी वगैरह से होने वाली इनकम की बात कर रहे हैं। एफडी के मामले में आपका बैंक आपको यह सर्टिफिकेट देगा।
👉 *फॉर्म 26 AS*
फॉर्म *26एएस एक कंसॉलिडेटेड टैक्स स्टेटमेंट* है। इसमें खासतौर से तीन तरह के ब्योरे होते हैं। पहला टीडीएस का ब्योरा, दूसरा टैक्स कलेक्टेड ऐट सोर्स का ब्योरा और तीसरा टैक्सपेयर द्वारा बैंक में जमा कराया गया एडवांस टैक्स/सेल्फ असेसमेंट टैक्स का ब्योरा। फॉर्म 26 एएस से आप यह पता लगा सकते हैं कि कंपनी या बैंक ने आपका जो टीडीएस काटा है, उसे सरकार के पास जमा कराया भी है या नहीं। इस टीडीएस का ब्योरा आप दो तरह से देख सकते हैं।
पहले incometaxindiaefiling.gov.in* पर जाएं। अगर आप पिछले सालों में रिटर्न भर चुके हैं तो आपके पास यूजर नेम और पासवर्ड होगा। इसी से लॉग-इन करें। अगर पहली बार रिटर्न भर रहे हैं तो Register Yourself पर जाकर रजिस्टर करें। यूजर नेम आपका पैन नंबर होता है और पासवर्ड आप खुद जेनरेट करेंगे। लॉग-इन करने के बाद View Form 26 AS पर क्लिक करें। अगर आप नेट बैंकिंग इस्तेमाल करते हैं तो बैंक की वेबसाइट पर जाकर View Your Tax Credit पर क्लिक करके फॉर्म 26 एएस देख सकते हैं, लेकिन इससे केवल उस बैंक में चल रही आपकी एफडी, सेविंग्स अकाउंट पर ब्याज आदि का ही पता चलेगा।
*7 टॉप गलतियां जो हम कर जाते हैं...* 🤔
*1. रिटर्न फाइल न करना*
चूंकि *आप पर टैक्स की कोई देनदारी नहीं है, इसलिए आपको रिटर्न भरने की जरूरत नहीं है, अगर आपकी ऐसी सोच है तो आप गलत हैं।* रिटर्न भरने से आजादी सिर्फ उन लोगों को है, जिनकी सालाना ग्रॉस इनकम बेसिक एग्जेंप्शन लेवल से कम है। 60 साल से कम उम्र के लोगों के लिए यह सीमा ढाई लाख रुपये है, 60 साल से ज्यादा और 80 साल से कम उम्र के बुजुर्गों के लिए 3 लाख रुपये है और 80 साल या उससे ज्यादा उम्र के लोगों के लिए 5 लाख रुपये है। जिस किसी की भी आमदनी इससे ज्यादा है, उसे रिटर्न भरना अनिवार्य है।
*2. गलत फॉर्म चुनना*
किसे कौन-सा फॉर्म भरना है, इसके लिए बाकायदा नियम हैं। कई बार लोग गलत फॉर्म का चुनाव कर लेते हैं। अपनी *कैटिगरी के हिसाब से सही रिटर्न फॉर्म चुनें* और उसे ही भरें।
*3. खाली फॉर्म पर साइन*
जो लोग किसी एजेंट के जरिए रिटर्न भरते हैं, वे अक्सर खाली रिटर्न फॉर्म पर दस्तखत करके एजेंट को दे देते हैं। एजेंट बाद में उस फॉर्म को भरकर जमा कर देता है। खाली फॉर्म पर दस्तखत न करें। फॉर्म भरने में एजेंट से गलती हो गई तो आपको दिक्कत होगी। *भरे हुए रिटर्न फॉर्म पर एक नजर डाल लेने के बाद ही उस पर साइन* करें।
*4. नंबरों पर ध्यान*
रिटर्न फॉर्म में पैन, आईएफएस कोड, अकाउंट नंबर, एम्प्लॉयर का टैन जैसी कुछ फिगर्स ऐसी होती है जिन्हें भरते वक्त गलती होने की आशंका रहती है। इन नंबरों को ध्यान से भरें। फर्ज करें *अगर आपने अपने पैन की एक डिजिट भी गलत भर दी, तो इनकम टैक्स विभाग आपके ऊपर जुर्माना* लगा सकता है।
*5. फॉर्म 16 न लेना*
अगर आपने फाइनैंशल इयर के दौरान नौकरी बदली है तो अपने दोनों एम्प्लॉयर से *फॉर्म 16 जरूर ले लें।* अपने पहले एम्प्लॉयर के साथ काम के दौरान की गई सेविंग्स और उससे हुई आमदनी अगर आपने अपने नए एम्प्लॉयर को नहीं बताई है तो हो सकता है, वह कम टैक्स काटे और बाद में आपको कम काटा गया टैक्स ब्याज सहित भरना पड़े।
*6. ब्याज न बताना*
कई बार लोग फिक्स्ड डिपॉजिट और सेविंग्स अकाउंट पर मिलने वाले ब्याज का जिक्र अपने इनकम टैक्स रिटर्न में नहीं करते हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि बैंक ने टीडीएस तो काट ही लिया है इसलिए उस आमदनी को आईटीआर में दिखाने की अब उन्हें कोई जरूरत ही नहीं रह गई है। यह धारणा पूरी तरह से गलत है।
*7. इनकम की क्लबिंग को नजरंदाज करना*
कई लोग पत्नी और बच्चों के नाम से भी इन्वेस्टमेंट करते हैं। आप पत्नी को कितनी भी रकम दे सकते हैं, लेकिन गिफ्ट की गई रकम को आप इन्वेस्ट करते हैं तो सेक्शन 64 सामने आ जाता है। इसके मुताबिक, गिफ्ट की गई रकम से कोई आमदनी होती है तो वह आपकी टैक्सेबल इनकम में जोड़ी जाएगी। इससे फर्क नहीं पड़ता कि पार्टनर को आमदनी होती है या नहीं।
👉🏻FY 2017-18 मैं टेक्सबल आय होने पर भी return नहीं भरने पर दिनांक 31.07.18 से 31.12.18 तक 5000/- और 31.12.18 से 31.12.19 तक 10000/-जुमार्ना तय किया है।
*डिडक्शंस की लिस्ट* 🚩
_80 सी, 80 सीसीसी और 80 सीसीडी में इन आइटम में छूट मिलती है। इसकी सीमा फाइनैंशल इयर 2017-18 के लिए 1.5 लाख रुपये है।_
पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (PPF)
एंप्लॉयी प्रॉविडेंट फंड (EPF)
पांच साल की बैंक एफडी
दो बच्चों की ट्यूशन फीस
सीनियर सिटिजंस सेविंग्स स्कीम
होम लोन के रीपेमेंट में प्रिंसिपल अमाउंट के तौर पर दी जाने वाली रकम
लाइफ इंशूरंस पॉलिसी प्रीमियम जो आप चुकाते हैं।
NSC viii इश्यू
इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम यानी ELSS
सुकन्या समृद्धि योजना में किया गया इन्वेस्टमेंट
*डेढ़ लाख के अलावा*
इन आइटमों में भी छूट मिलती है, जो 1.5 लाख की सीमा से अलग है:
80 D : हेल्थ इंशूरंस पॉलिसी का प्रीमियम 15 हजार की सीमा तक।
24 b : होम लोन के रीपेमेंट में ब्याज की रकम पर। इसकी सीमा दो लाख रुपये है।
★80 E : हायर स्टडीज के लिए लिए गए एजुकेशन लोन के रीपेमेंट में ब्याज की रकम पर। कोई सीमा नहीं।
★80 G : किसी संस्था को दी जाने वाली डोनेशन।
★U/S 87 के तहत् 3.50 लाख तक टेक्सेबल वार्षिक आय पर 2500/-की छूट का प्रावधान किया है।
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