Sunday, January 28, 2018

रानी पद्मिनी की कहानी

पिछले दिनों सुर्खियों में रही पद्मावती/ Padmavati यानी संजय लीला भंसाली कि फिल्म पद्मावती ने काफी चर्चा बटोरी है. इस फिल्म के चलते संजय लीला भंसाली के साथ हिंसक घटना भी सुनने में आई. हिंसक तत्वों का कहना है कि फिल्म में अलाउदीन खिलजी और रानी पद्मावती के रोमांस को दिखाया जाना गलत है और संजय लीला भंसाली फिल्म में इतिहास को तोड़ मरोड़ कर लोगो के सामने रख रहे है. ऐसा नही है कि इतिहास पर आधारित फिल्म का विरोध पहली बार हो रहा है. इससे पहले भी 2008 में आशुतोष गोवारिकर कि “जोधा-अकबर” फिल्म पर इतिहास से छेड़छाड़ का आरोप लगा था. उसके बाद एकता कपूर ने सीरियल “जोधा अकबर” बनाया . विरोध करने वालो का कहना था कि इतिहास में जोधा नाम कि कोई रानी नही थी जिसका प्रयोग बार बार किया जा रहा है इसके साथ ही कई गुटों ने फिल्म “बाजीराव मस्तानी” का भी विरोध किया था लेकिन सब विरोधो के बाद भी ये फिल्मे रिलीज़ हुई और हिट भी रही.


पद्मावती/ Padmavati फिल्म भी कुछ इसी तरह के विरोधो से घिरी है लेकिन इस पर अलग अलग संस्थाओ का अलग अलग मत है. पिछले दिनों राजस्थान टूरिज्म का एक ट्विट आया था जिसमे कहा गया कि पद्मावती, खिलजी कि प्रेमिका थी हालाकिं बाद में उस ट्विट को हटा लिया गया. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह एक काल्पनिक कहानी है. इनकी कहानी तत्कालीन कवि मलिक मुहम्मद जायसी ने अवधी भाषा में पद्मावत ग्रंथ रूप में लिखी है.  जायसी ने “पद्मावत” 1540 में लिखा और खिलजी का काल 1316 तक था. और कई इतिहासकारों ने पद्मावती को एक काल्पनिक किरदार बताया. फिर भी इतिहास में जो कहानी प्रचलित है वो कहानी हम आपके सामने रखने की कोशिश कर रहे है. रानी पद्मावती की biography मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा 1540 CE में लिखे गए पद्मावत ग्रंथ पर आधारित है.

रानी पद्मिनी का बचपन और स्वयंवर में रतन सिंह से विवाह




Rani Padmini रानी पदमिनी के पिता का नाम गंधर्वसेन और माता का नाम चंपावती था | Rani Padmini रानी पद्मिनी के पिता गंधर्वसेन सिंहल प्रान्त के राजा थे |बचपन में पदमिनी के पास “हीरामणी ” नाम का बोलता तोता हुआ करता था जिससे साथ उसमे अपना अधिकतर समय बिताया था | रानी पदमिनी बचपन से ही बहुत सुंदर थी और बड़ी होने पर उसके पिता ने उसका स्वयंवर आयोजित किया | इस स्वयंवर में उसने सभी हिन्दू राजाओ और राजपूतो को बुलाया | एक छोटे प्रदेश का राजा मलखान सिंह भी उस स्वयंवर में आया था |
राजा रावल रतन सिंह भी पहले से ही अपनी एक पत्नी नागमती होने के बावजूद स्वयंवर में गया था | प्राचीन समय में राजा एक से अधिक विवाह करते थे ताकि वंश को अधिक उत्तराधिकारी मिले | राजा रावल रतन सिंह ने मलखान सिंह को स्वयंमर में हराकर पदमिनी Padmavati से विवाह कर लिया | विवाह के बाद वो अपनी दुसरी पत्नी पदमिनी के साथ वापस चित्तोड़ लौट आया |

रानी पद्मिनी की कहानी


चित्तौड़ की रानी पद्मिनी जिन्हें पद्मावती के नाम से भी जाना जाता था 13 वीं -14 वीं शताब्दी की महान भारतीय रानियों में से एक है. रानी पद्मिनी को उनकी सुन्दरता के लिए जाना जाता था और इतिहास में कई बार उनके सोंदर्य का उल्लेख किया गया है. पदमिनी, सिंहला की राजकुमारी थी. उनके पिता गंधार्व्सेना श्रीलंका में स्थित सिंहला राज्य के राजा थे, उनके पिता ने पदमिनी के लिए एक स्वयंवर रखा जिसमे बहुत सारे हिन्दू राजाओ और राजपूतो को बुलाया गया.
वही चितौड़ गढ़ के राजा रावल रत्न सिंह की 13 रानियाँ होने के बाद भी वो स्वयंवर में गए और वहा आये सभी राजाओ को हरा कर रानी पदमिनी को जीत लिया. और उन्हें अपने साथ चितौडगढ़ ले आये. और उसके बाद रत्न सिंह को रानी से प्रेम हो गया और उन्होंने उसके बाद कभी शादी नही की. रत्न सिंह सिसोदिया वंश के थे. राजा रत्न सिंह का राज्य एक बहुत ही खुशहाल राज्यों में से एक था जहा बड़े बड़े कलाकार, बुद्धिजीवी और श्रेष्ठ योधा थे और राजा भी उन सब की कदर करते थे.
रत्न सिंह के राज्य के एक संगीतकर “राघव चेतन” जिसे प्रजा एक अव्वल दर्जे का संगीतकार मानती थी और राजा भी उनके संगीत की तारीफ किया करते थे लेकिन राघव चेतन अपने प्रतिद्वंद्वियों पर कला जादू करता था और हर बार जीत जाता था. ये बात किसी तरह राजा तक पहुच गई और राजा ने उसे दण्ड दिया और फिर उसे राज्य से बाहर निकालने का आदेश दिया.
राघव चेतन ये सब बर्दाश नही कर पाया और उसने बदला लेने की योजना बनाई. वह दिल्ली चला गया और वहां के सुल्तान अल्लाउदीन खिलजी के पास जाकर रानी के सौन्दर्य का बखान करने लगा. अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली सल्तनत के खिलजी वंश का दूसरा शासक था. अल्लाउदीन खिलजी रानी के बारे में सुन कर खुद को रोक नही पाया और रानी को देखने के लिए महमान बन कर रत्न सिंह के महल जा पंहुचा.

रत्न सिंह के महल पहुँच कर भी खिलजी रानी का चहरा देख नही सका. क्योकि परम्परा के अनुसार रानी किसी  पराये मर्द को अपना मुहँ नही दिखाती और घूँघट में ही रहती थी . यह बात जान कर खिलजी ने रत्न सिंह से आग्रह किया की वह रानी को देखना चाहते है लेकिन रानी ने मना कर दिया. रत्न सिंह ने रानी को समझाया की खिलजी एक बहुत बड़े साम्राज्य के सुल्तान है. उन्हें मना करना ठीक नही होगा. यह सब जान कर रानी मान गई लेकिन रानी ने एक शर्त रखी की खिलजी, शीशे में उन्हें देख सकता है वो भी रतन सिंह और कुछ दासियों के सामने. यह शर्त खिलजी ने स्वीकार कर ली.
रानी पद्मावती/ Padmavati
यह सुन कर रानी पद्मावती/ Padmavati ने अपनी पवित्रता को कायम रखने के लिए आग में कूद कर आत्मदाह कर लिया जिसे जोहर कहा जाता था. बताया जाता है की इसमें महल की 1600 महिलाये भी उनके साथ थी.
हालाकिं अमीर ख़ुसरो द्वारा लिखा गया खज़ा’इनउल फुतूह जो अलाउद्दीन खिलज़ी के चित्तौड़गढ़ अभियान का एकमात्र स्रोत है, पद्मावती का युद्ध अभियान में कोई जिक्र नहीं करता. अमीर ख़ुसरो अलाउद्दीन खिलज़ी के दरबार के एक प्रमुख कवि, शायर, गायक और संगीतकार थे

रानी पद्मिनी ने अपने मान के लिए किया जौहर


अलाउदीन कुछ समय तक शांत रहा | इसके बाद सन 1330 में उसने पुन: चित्तोड़ पर आक्रमण किया | इस बार वह विशाल सेना लेकर पुरी तैयारी के साथ आया था | राजा रत्नसेन अलाउदीन के शक्ति से परिचित थे | फिर भी उन्होंने रणबांकुरो को तैयार किया और युद्ध के मैदान में डट गये | कुछ ही समय में दोनों सेनाये आमने-सामने आ पहुची और उनमे भयंकर मारकाट आरम्भ हो गयी | रानी पद्मिनी भी इस युद्ध का परिणाम जानती थी | वह जीते जी क्रूर शासक अलाउदीन के हाथो नही पड़ना चाहती थी अत: उसने अन्य राजपूत बालाओ के साथ जौहर करने का निर्णय किया |
चित्तोड़ के किले के भीतर ही एक स्थान पर लकडियो का एक विशाल ढेर बनाकर हवनकुंड सा तैयार किया गया और उसमे आग लगा दी गयी | सर्वप्रथम रानी ने हवनकुंड में प्रवेश कर अपने प्राणों की आहुति दी | इसके बाद अन्य क्ष्त्रानियो ने अपने प्राणों का उत्सर्ग किया | राजा रत्नसेन और उनके बहादुर सैनिको को जब रानी पद्मिनी के जौहर की सुचना मिली तो वे क्रोध से भर उठे और भूखे भेडियो के समान अलाउदीन की सेना पर टूट पड़े किन्तु अलाउदीन की विशाल सेना के समक्ष अधिक समय तक नही टिक सके |
इस प्रकार अलाउदीन की विजय हुयी किन्तु वह जीतकर भी हार गया | अलाउदीन जब चित्तोड़ के किले के भीतर पंहुचा तो वहा उसे रानी पद्मिनी के स्थान पर उसकी अस्थियाँ मिली | रानी पद्मिनी (Padmavati) का जौहर देखकर अलौदीना का क्रूर हृदय भी द्रवित हो उठा और उसका मस्तक भी इस वीरांगना के लिए श्रुधा से झुक गया |

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