मुंशी प्रेमचंद | Munshi Premchand
जन्म
प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के निकट लमही गाँव में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी था तथा पिता मुंशी अजायबराय लमही में डाकमुंशी थे। उनकी शिक्षा का आरंभ उर्दू, फारसी से हुआ और जीवनयापन का अध्यापन से पढ़ने का शौक उन्हें बचपन से ही लग गया। 13 साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक नियुक्त हो गए। नौकरी के साथ ही उन्होंने पढ़ाई जारी रखी। उन्होंने अंग्रेजी, दर्शन, फारसीऔर इतिहास लेकर इंटर पास किया और बी.ए. पास करने के बाद शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए।
उन्होंने अपने जीवन में 12 से ज़्यादा उपन्यास और करीब 300 लघु कहानियां लिखीं.
गोदान
किसानों की समस्याओं पर लिखे इस उपन्यास को उनका सबसे लोकप्रिय माना जाता है. उपन्यास के नायक होरी और उसके परिवार के ज़रिए प्रेमचंद ने किसानों की हालात को लेकर करारा व्यंग्य किया है कि कुछ ना होते हुए भी एक मामूली इंसान अपने उसूलों को अंजाम तक पहुंचाने के लिए क्या कुछ नहीं करता.
गोदान 1936 में प्रकाशित हुआ था. गुलज़ार ने इस पर एक फ़िल्म और टीवी सीरीज़ भी शुरू की, जिसका नाम था. 'तहरीर...मुंशी प्रेमचंद की'
निर्मला
निर्मला 15 साल की लड़की पर आधारित उपन्यास है था, जिसकी शादी जबरन एक ऐसे मर्द से करा दी जाती है, जो उसके पिता की उम्र का है. इसके बाद वो शख़्स निर्मला और अपने बड़े बेटे (पहली बीवी से) के बीच रिश्तों को लेकर शक करता है.
ये उपन्यास 1928 में प्रकाशित हुआ था. प्रेमचंद ने इसके जरिए समाज की समस्याओं पर तीखा व्यंग्य किया.
गबन
गबन उपन्यास रामनाथ नाम के एक क्लर्क पर था, जो महत्वाकांक्षी है और जल्द बड़ा आदमी बनना चाहता है. इन्हीं महत्वकांक्षाओं को पूरा करने के लिए वो अपनी पत्नी के आभूषण चोरी करता है और सरकारी पैसों में गबन करता है. इसके चलते वो मुसीबत में फंस जाता है और कोलकाता भाग जाता है. लेकिन वहां भी वो एक झूठी चोरी के मामले में गिरफ्तार कर लिया जाता है.
1931 में प्रेमचंद का ये उपन्यास प्रकाशित हुआ. 1961 में निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी ने इसी नाम से एक फिल्म भी बनाई थी.
शतरंज के खिलाड़ी
ये लघु कहानी नवाबों और अंग्रेजों पर आधारित है. 1856 के हालात पर बना ये उपन्यास बताता है कि मिर्ज़ा सज़्जाद और मीर रोशन शतरंज की चालों में इतना खो जाते हैं कि उन्हें पता ही नहीं चलता कि अंग्रेजों ने उन पर हमला कर दिया है.
महान निर्देशक सत्यजीत रे ने 1977 में इसी नाम से एक फिल्म भी बनाई.
कफ़न
1936 में अपनी मौत से पहले कफ़न प्रेमचंद का आखिरी उपन्यास था. ये आखिरी के साथ-साथ सबसे मार्मिक भी था. इस उपन्यास में दिखाया है कि कैसे एक छोटी जाति का परिवार अंतिम संस्कार के लिए गांव के लोगों से भीख मांगता है
मृत्यु
हिंदी के सबसे बड़े कलमनिगार प्रेमचंद का लिखा साहित्य का हर पुर्जा समाज पर एक कड़ा प्रहार हुआ करता था. 8 अक्टूबर 1931 के रोज़ वो यह दुनिया छोड़ गए थे,
लेकिन उनकी कलम से निकली सच्चाई, आज भी समाज को आईना दिखाने के लिए काफी हैं.
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