MP SI टाइटैनिक से जुड़ी खास बातें
आप सभी को जेम्स कैमरोन की हॉलीवुड की मशहूर फिल्म टाइटेनिक तो याद होगी ही। इस फिल्म कि किसी एक दृश्य को बेहतर कहना अपने ही समीक्षा की अवहेलना करना होगा। कैमरोन ने इस फिल्म में उस की घटना के समय की सार बारिकियों को डाला था जिसे यह फिल्म आज भी लोगों के जेहन में एक ताजा याद बनकर रह गई है। फिल्म में जेम्स न लगभग हर छोटी बातों का बखूबी ध्यान रखा था, जो कि अपने आप में एक इतिहास की मोटी किताब से कम नहीं है।
लेकिन टाइटेनिक न केवल अपने समय का सबसे बड़ा जहाज था, बल्कि उस जहाज से जुड़ी कई रोचक बाते हैं जिन्हें शायद आप नहीं जानते होंगे। जिस प्रकार उस जहाज का रूप शानदार था, ठिक वैसे ही उसका अतित भी बेहद लाजवाब था। निश्चय ही टाइटेनिक के लिये इतिहास ने जब भी कलम उठाई तो उसे भव्यता से ही
सकारा है। तो आइये तस्वीरों के माध्यम से चलते हैं टाइटेनिक की रोमांचकारी यात्रा पर।
टाइटैनिक जहाज के सफर शुरू करने से पहले एक खास प्रथा भी नहीं निभाई गई। सफर की शुरुआत से पहले प्रथा के मुताबिक, जहाज पर एक तय जगह पर शराब की बोतल तोड़ी जाती थी, लेकिन टाइटैनिक के सफर शुरू करने से पहले इस परंपरा का पालन नहीं किया गया था। लोगों का मानना है कि अगर ऐसा किया गया होता, तो शायद जहाज हादसे का शिकार नहीं होता।
ब्रिटेन के साउथ हैम्पटन से न्यूयॉर्क की यात्रा पर निकला टाइटैनिक जहाज 15 अप्रैल (1912) को समुद्र में डूबा था।
ब्रिटेन के यात्री जहाज टाइटैनिक के बारे में जब भी कोई जिक्र छिड़ेगा, तो 10 अप्रैल का जिक्र होना ही है। 102 साल पहले इसी दिन साउथ हैम्पटन से इस जहाज ने अपनी आखिरी यात्रा की शुरुआत की थी। टाइटैनिक के बारे में जानने वाले आमतौर पर ये बात जानते हैं कि इस सफर के दौरान टाइटैनिक हादसे का शिकार होकर उत्तरी अटलांटिक सागर में डूब गया था, लेकिन इस जहाज और इसके आखिरी सफर से जुड़ी कुछ बातें शायद ही कोई जानता हो
व्हाइट स्टार लाइन कंपनी का यह 52, 310 टन वजनी जहाज 10 अप्रैल, 1912 को यात्रा पर निकला था। 14-15 अप्रैल की दरमियानी रात 11 बजकर 40 मिनट पर टाइटैनिक बर्फ के विशाल टुकड़े से टकराया और 2 घंटे 40 मिनट बाद ही डूब गया था।
इस हादसे में 1,500 से ज्यादा यात्री मारे गए थे। जहाज पर 2,224 यात्री सवार थे।
टाइटैनिक में टिकट का रेट:
फर्स्ट क्लास : करीब 2.60 लाख रुपए (4,350 डॉलर)
सेकेंड क्लास : करीब एक लाख रुपए (1750 डॉलर)
थर्ड क्लास : 1800 रुपए (30 डॉलर)
टाइटैनिक से जुड़ी कुछ खास बातें:
1. जहाज पर सवार 13 जोड़े हनीमून सेलिब्रेशन के लिए यात्रा पर निकले थे।
2. टाइटैनिक की सीटी की आवाज 11 मील दूर से सुनी जा सकती थी।
3. टाइटैनिक के इंजन को चलाने में हर दिन 825 टन कोयले की खपत होती थी।
4. इसे बनाने में 30 लाख से ज्यादा कीलों का इस्तेमाल किया गया था।
5. टाइटैनिक में चार एलिवेटर्स थे, जिनमें से तीन फर्स्ट क्लास में और एक सेकेंड क्लास में था।
6. 20 नॉट्स (37 किलोमीटर) की रफ्तार से चल रहे टाइटैनिक को रोकने के लिए इसके इंजन को पूरी रफ्तार से उल्टा चलाने की जरूरत थी। इतनी रफ्तार पर भी यह आधे मील की दूरी में रुक सकता था।
टाइटेनिक की निर्माता कंपनी स्टार लाईन का दावा था कि, इस जहाज पर 3547 लोग आसानी से सफर कर सकते हैं। लेकिन उस दौरान इस जहाज पर महज 2,200 लोग ही थें।
टाइटैनिक से दुनिया का पहला SOS कॉल हुआ था?
नहीं। टाइटैनिक के सफर के बहुत पहले से SOS सिस्टम लागू था। दरअसल पहले ब्रिटिश जहाज इमरजेंसी में CQD मैसेज करते थे, जिसका मतलब होता था- सीक यू- डेंजर/डिस्ट्रेस। आपात स्थिति में मोर्स कोड के जरिए मैसेज भेजे जाते थे, जिसमें लैटर्स को डॉट्स से दर्शाया जाता था। सीक्यूडी लिखने पर डॉट्स में कन्फ्यूजन होता था, इसलिए 1906 में हुई दूसरी वर्ल्ड टेलीग्राफिक कॉन्फ्रेंस में एसओएस को इमरजेंसी मैसेज के रूप में चुना गया। इसमें कन्फ्यूजन की आशंका नहीं थी, क्योंकि SOS को मोर्स कोड में तीन डॉट, तीन हाइफन, तीन डॉट (…—…) से लिखा जाता था। 2012 में टाइटैनिक के सफर तक यह प्रचलन में आ चुका था, हालांकि फैक्ट यह है कि टाइटैनिक से पहले सीक्यूडी मैसेज भेजा गया, फिर एसओएस।
यह बात भी गलत है। इसके विपरीत, यात्रा से पहले अधिकारियों ने देखा कि उसमें आवश्यक 16 बोट्स के अलावा 4 स्माॅल बोट्स भी हैं। हो सकता है कि टाइटैनिक की मजबूती और उसके डूबने की मामूली आशंका के चलते इतने को पर्याप्त माना गया हो। हालांक विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगर ज्यादा बोट्स होतीं, तब भी ज्यादा यात्रियों को नहीं बचाया जा सकता था। इसका कारण यह है कि जहाज तेजी से डूबा तड़के 2:15 बजे उसके पूरी तरह डूबने से 5 मिनट पहले ही आखिरी लाइफबोट रवाना हुई थी।
जहाज के कोल बंकर में लगी आग ने जहाज को कमजोर कर दिया था, जिसके कारण आइसबर्ग की टक्कर से वह धाराशायी हो गया?
यह सच है कि टाइटैनिक के कोल बंकर में आग लगी थी, लेकिन उस पर काबू पा लिया गया था। इसके अलावा टाइटैनिक के जिस हिस्से पर क्षति दिखाई जाती है, वह कोल बंकर से 50 फुट की दूरी पर था।
बोट या शिप को सीरियल आइडेंटिफिकेशन नंबर दिया जाता है, जो हुल नंबर कहलाता है। कहा जाता है कि टाइटैनिक का हुल नंबर 360604 था, जिसे आईने में देखने पर No Pope लिखा हुआ दिखता था। लेकिन सच यह है कि टाइटैनिक का हुल नंबर 401 था। इस आईने में देखें, तो यह ROA की तरह दिखता है, जिसका फुल फॉर्म होगा- रिटर्न ऑन एसेट्स।
आप सभी को जेम्स कैमरोन की हॉलीवुड की मशहूर फिल्म टाइटेनिक तो याद होगी ही। इस फिल्म कि किसी एक दृश्य को बेहतर कहना अपने ही समीक्षा की अवहेलना करना होगा। कैमरोन ने इस फिल्म में उस की घटना के समय की सार बारिकियों को डाला था जिसे यह फिल्म आज भी लोगों के जेहन में एक ताजा याद बनकर रह गई है। फिल्म में जेम्स न लगभग हर छोटी बातों का बखूबी ध्यान रखा था, जो कि अपने आप में एक इतिहास की मोटी किताब से कम नहीं है।
लेकिन टाइटेनिक न केवल अपने समय का सबसे बड़ा जहाज था, बल्कि उस जहाज से जुड़ी कई रोचक बाते हैं जिन्हें शायद आप नहीं जानते होंगे। जिस प्रकार उस जहाज का रूप शानदार था, ठिक वैसे ही उसका अतित भी बेहद लाजवाब था। निश्चय ही टाइटेनिक के लिये इतिहास ने जब भी कलम उठाई तो उसे भव्यता से ही
सकारा है। तो आइये तस्वीरों के माध्यम से चलते हैं टाइटेनिक की रोमांचकारी यात्रा पर।
टाइटैनिक जहाज के सफर शुरू करने से पहले एक खास प्रथा भी नहीं निभाई गई। सफर की शुरुआत से पहले प्रथा के मुताबिक, जहाज पर एक तय जगह पर शराब की बोतल तोड़ी जाती थी, लेकिन टाइटैनिक के सफर शुरू करने से पहले इस परंपरा का पालन नहीं किया गया था। लोगों का मानना है कि अगर ऐसा किया गया होता, तो शायद जहाज हादसे का शिकार नहीं होता।
ब्रिटेन के साउथ हैम्पटन से न्यूयॉर्क की यात्रा पर निकला टाइटैनिक जहाज 15 अप्रैल (1912) को समुद्र में डूबा था।
ब्रिटेन के यात्री जहाज टाइटैनिक के बारे में जब भी कोई जिक्र छिड़ेगा, तो 10 अप्रैल का जिक्र होना ही है। 102 साल पहले इसी दिन साउथ हैम्पटन से इस जहाज ने अपनी आखिरी यात्रा की शुरुआत की थी। टाइटैनिक के बारे में जानने वाले आमतौर पर ये बात जानते हैं कि इस सफर के दौरान टाइटैनिक हादसे का शिकार होकर उत्तरी अटलांटिक सागर में डूब गया था, लेकिन इस जहाज और इसके आखिरी सफर से जुड़ी कुछ बातें शायद ही कोई जानता हो
व्हाइट स्टार लाइन कंपनी का यह 52, 310 टन वजनी जहाज 10 अप्रैल, 1912 को यात्रा पर निकला था। 14-15 अप्रैल की दरमियानी रात 11 बजकर 40 मिनट पर टाइटैनिक बर्फ के विशाल टुकड़े से टकराया और 2 घंटे 40 मिनट बाद ही डूब गया था।
टाइटैनिक के कैप्टन एडवर्ड जॉन स्मिथ इस सफर के बाद रिटायर होने वाले थे।
वे टाइटैनिक के सफर को अपने करियर में नगीने की तरह जड़ना चाहते थे।
वे टाइटैनिक के सफर को अपने करियर में नगीने की तरह जड़ना चाहते थे।
इस हादसे में 1,500 से ज्यादा यात्री मारे गए थे। जहाज पर 2,224 यात्री सवार थे।
टाइटैनिक में टिकट का रेट:
फर्स्ट क्लास : करीब 2.60 लाख रुपए (4,350 डॉलर)
सेकेंड क्लास : करीब एक लाख रुपए (1750 डॉलर)
थर्ड क्लास : 1800 रुपए (30 डॉलर)
टाइटैनिक से जुड़ी कुछ खास बातें:
1. जहाज पर सवार 13 जोड़े हनीमून सेलिब्रेशन के लिए यात्रा पर निकले थे।
2. टाइटैनिक की सीटी की आवाज 11 मील दूर से सुनी जा सकती थी।
3. टाइटैनिक के इंजन को चलाने में हर दिन 825 टन कोयले की खपत होती थी।
4. इसे बनाने में 30 लाख से ज्यादा कीलों का इस्तेमाल किया गया था।
5. टाइटैनिक में चार एलिवेटर्स थे, जिनमें से तीन फर्स्ट क्लास में और एक सेकेंड क्लास में था।
6. 20 नॉट्स (37 किलोमीटर) की रफ्तार से चल रहे टाइटैनिक को रोकने के लिए इसके इंजन को पूरी रफ्तार से उल्टा चलाने की जरूरत थी। इतनी रफ्तार पर भी यह आधे मील की दूरी में रुक सकता था।
टाइटेनिक की निर्माता कंपनी स्टार लाईन का दावा था कि, इस जहाज पर 3547 लोग आसानी से सफर कर सकते हैं। लेकिन उस दौरान इस जहाज पर महज 2,200 लोग ही थें।
टाइटैनिक से दुनिया का पहला SOS कॉल हुआ था?
नहीं। टाइटैनिक के सफर के बहुत पहले से SOS सिस्टम लागू था। दरअसल पहले ब्रिटिश जहाज इमरजेंसी में CQD मैसेज करते थे, जिसका मतलब होता था- सीक यू- डेंजर/डिस्ट्रेस। आपात स्थिति में मोर्स कोड के जरिए मैसेज भेजे जाते थे, जिसमें लैटर्स को डॉट्स से दर्शाया जाता था। सीक्यूडी लिखने पर डॉट्स में कन्फ्यूजन होता था, इसलिए 1906 में हुई दूसरी वर्ल्ड टेलीग्राफिक कॉन्फ्रेंस में एसओएस को इमरजेंसी मैसेज के रूप में चुना गया। इसमें कन्फ्यूजन की आशंका नहीं थी, क्योंकि SOS को मोर्स कोड में तीन डॉट, तीन हाइफन, तीन डॉट (…—…) से लिखा जाता था। 2012 में टाइटैनिक के सफर तक यह प्रचलन में आ चुका था, हालांकि फैक्ट यह है कि टाइटैनिक से पहले सीक्यूडी मैसेज भेजा गया, फिर एसओएस।
यह बात भी गलत है। इसके विपरीत, यात्रा से पहले अधिकारियों ने देखा कि उसमें आवश्यक 16 बोट्स के अलावा 4 स्माॅल बोट्स भी हैं। हो सकता है कि टाइटैनिक की मजबूती और उसके डूबने की मामूली आशंका के चलते इतने को पर्याप्त माना गया हो। हालांक विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगर ज्यादा बोट्स होतीं, तब भी ज्यादा यात्रियों को नहीं बचाया जा सकता था। इसका कारण यह है कि जहाज तेजी से डूबा तड़के 2:15 बजे उसके पूरी तरह डूबने से 5 मिनट पहले ही आखिरी लाइफबोट रवाना हुई थी।
जहाज के कोल बंकर में लगी आग ने जहाज को कमजोर कर दिया था, जिसके कारण आइसबर्ग की टक्कर से वह धाराशायी हो गया?
यह सच है कि टाइटैनिक के कोल बंकर में आग लगी थी, लेकिन उस पर काबू पा लिया गया था। इसके अलावा टाइटैनिक के जिस हिस्से पर क्षति दिखाई जाती है, वह कोल बंकर से 50 फुट की दूरी पर था।
बोट या शिप को सीरियल आइडेंटिफिकेशन नंबर दिया जाता है, जो हुल नंबर कहलाता है। कहा जाता है कि टाइटैनिक का हुल नंबर 360604 था, जिसे आईने में देखने पर No Pope लिखा हुआ दिखता था। लेकिन सच यह है कि टाइटैनिक का हुल नंबर 401 था। इस आईने में देखें, तो यह ROA की तरह दिखता है, जिसका फुल फॉर्म होगा- रिटर्न ऑन एसेट्स।
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