*जानिए, कैसे होता है भारत के उप राष्ट्रपति का चुनाव*
चुनाव आयोग ने उप राष्ट्रपति चुनाव के लिए तारीख़ का ऐलान कर दिया है. 5 अगस्त को मतदान होगा और नतीजा भी इसी दिन घोषित कर दिया जाएगा. अभी तक न तो एनडीए ने इस पद के लिए अपने उम्मीदवार का नाम घोषित किया है और न ही विपक्ष ने.
ग़ौरतलब है कि मौजूदा उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी का दूसरा कार्यकाल 10 अगस्त को ख़त्म हो रहा है.
*क्या हैं उपराष्ट्रपति की ज़िम्मेदारियां*
यह चुनाव इसलिए अहम है क्योंकि उप राष्ट्रपति राज्यसभा का सभापति भी होता है. संविधान में उपराष्ट्रपति को मुख्य ज़िम्मेदारी यही दी गई है.
इसके अलावा भी कुछ भूमिकाएं भी हैं जिनका निर्वहन उप राष्ट्रपति को करना होता है. अगर राष्ट्रपति का पद किसी वजह से ख़ाली हो जाए तो यह ज़िम्मेदारी उप राष्ट्रपति को ही निभानी पड़ती है क्योंकि राष्ट्रप्रमुख के पद को ख़ाली नहीं रखा जा सकता.
पदक्रम के आधार पर देखें तो उप राष्ट्रपति का पद राष्ट्रपति से नीचे और प्रधानमंत्री से ऊपर होता है. उप राष्ट्रपति विदेश दौरों पर भी जाते हैं ताकि अन्य देशों के साथ कूटनीतिक रिश्ते मज़बूत किए जा सकें.
*क्या है चुनाव की प्रक्रिया*
उप राष्ट्रपति का चुनाव परोक्ष होता है जिसके निर्वाचक मंडल यानी इलेक्टोरल कॉलेज में राज्यसभा और लोकसभा के सांसद शामिल होते हैं. राष्ट्रपति चुनाव में चुने हुए सांसदों के साथ विधायक भी मतदान करते हैं लेकिन उप राष्ट्रपति चुनाव में लोकसभा और राज्यसभा के सांसद ही वोट डाल सकते है.
ख़ास बात यह है कि दोनों सदनों के लिए मनोनीत सांसद राष्ट्रपति चुनाव में मतदान नहीं कर सकते लेकिन वे उप राष्ट्रपति चुनाव में वोटिंग कर सकते हैं. इस तरह से देखा जाए तो उप राष्ट्रपति चुनाव में दोनों सदनों के 790 निर्वाचक हिस्सा लेंगे.
*राज्यसभा*
चुने हुए सदस्य: 233, मनोनीत सदस्य: 12
*लोक सभा*
चुने हुए सदस्य: 543, मनोनीत सदस्य: 2
कुल निर्वाचक: 790
उप राष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा हो जाने के 60 दिनों के अंदर चुनाव कराना ज़रूरी होता है. इसके लिए चुनाव आयोग एक निर्वाचन अधिकारी नियुक्त करता है जो मुख्यत: किसी एक सदन का सेक्रेटरी जनरल होता है.
निर्वाचन अधिकारी चुनाव को लेकर पब्लिक नोट जारी करता है और उम्मीदवारों से नामांकन मंगवाता है. उप राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवार के पास 20 प्रस्तावक और कम से कम 20 अन्य अनुमोदक होने चाहिए.
प्रस्तावक और अनुमोदक राज्यसभा और लोकसभा के सदस्य ही हो सकते है. उम्मीदवार को 15000 रुपए भी जमा कराने होते हैं. इसके बाद निर्वाचन अधिकारी नामांकन पत्रों की जांच करता है और योग्य उम्मीदवारों के नाम बैलट में शामिल किए जाते हैं.
*योग्यता*
कोई व्यक्ति भारत का उप राष्ट्रपति चुने जाने के लिए तभी योग्य होगा जब वह कुछ शर्तों को पूरा करता हो. जैसे, वह भारत का नागरिक होना चाहिए, उम्र 35 साल से कम नहीं होनी चाहिए और वह राज्यसभा के लिए चुने जाने की योग्यताओं को पूरा करता हो.
अगर कोई भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन कोई लाभ का पद रखता है तो वह उप राष्ट्रपति चुने जाने के योग्य नहीं होगा. अगर संसद के किसी सदन या राज्य विधानमंडल का कोई सदस्य उपराष्ट्रपति चुन लिया जाता है तो यह समझा जाता है कि उन्होंने उपराष्ट्रपति का पद ग्रहण करते ही अपना पिछला स्थान ख़ाली कर दिया है.
*चुनाव की प्रक्रिया*
उप राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव इलेक्शन अनुपातिक प्रतिनिधि पद्धति (proportional representation) से किया जाता है. इसमें वोटिंग खास तरीके से होती है जिसे सिंगल ट्रांसफ़रेबल वोट सिस्टम कहते हैं. इसमें मतदाता को वोट तो एक ही देना होता है मगर उसे अपनी पसंद के आधार पर प्राथमिकता तय करनी होती है. वह बैलट पेपर पर मौजूद उम्मीदवारों में अपनी पहली पसंद को 1, दूसरी पसंद को 2 और इसी तरह से आगे की प्राथमिकता देता है.
*ऐसे होती है वोटों की गिनती*
सबसे पहले यह देखा जाता है कि सभी उम्मीदवारों को पहली प्राथमिकता वाले कितने वोट मिले हैं. फिर सभी को मिले पहली प्राथमिकता वाले वोटों को जोड़ा जाता है. कुल संख्या को 2 से भाग किया जाता है और भागफल में 1 जोड़ दिया जाता है. अब जो संख्या मिलती है उसे वह कोटा माना जाता है जो किसी उम्मीदवार को काउंटिंग में बने रहने के लिए ज़रूरी है.
अगर पहली गिनती में ही कोई कैंडिडेट जीत के लिए ज़रूरी कोटे के बराबर या इससे ज़्यादा वोट हासिल कर लेता है तो उसे विजयी घोषित कर दिया जाता है. अगर ऐसा न हो पाए तो प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाती है. सबसे पहले उस उम्मीदवार को चुनाव की रेस से बाहर किया जाता है जिसे पहली गिनती में सबसे कम वोट मिले हों.
लेकिन उसे पहली प्राथमिकता देने वाले वोटों में यह देखा जाता है कि दूसरी प्राथमिकता किसे दी गई है. फिर दूसरी प्राथमिकता वाले ये वोट अन्य उम्मीदवारों के ख़ाते में ट्रांसफर कर दिए जाते हैं. इन वोटों के मिल जाने से अगर किसी उम्मीदवार के मत कोटे वाली संख्या के बराबर या ज़्यादा हो जाएं तो उस उम्मीदवार को विजयी घोषित कर दिया जाता है.
अगर दूसरे राउंड के अंत में भी कोई कैंडिडेट न चुना जाए तो प्रक्रिया जारी रहती है. सबसे कम वोट पाने वाले कैंडिडेट को बाहर कर दिया जाता है. उसे पहली प्राथमिकता देने वाले बैलट पेपर्स और उसे दूसरी काउंटिंग के दौरान मिले बैलट पेपर्स की फिर से जांच की जाती है और देखा जाता है कि उनमें अगली प्राथमिकता किसे दी गई है.
फिर उस प्राथमिकता को संबंधित उम्मीदवारों को ट्रांसफ़र किया जाता है. यह प्रक्रिया जारी रहती है और सबसे कम वोट पाने वाले उम्मीदवारों को तब तक बाहर किया जाता रहेगा जब तक किसी एक उम्मीदवार को मिलने वाले वोटों की संख्या कोटे के बराबर न हो जाए.
इलेक्शन हो जाने के बाद वोटों की गिनती होती है और निर्वाचन अधिकारी नतीजे का ऐलान करता है. इसके बाद रिज़ल्ट को चुनाव आयोग और केंद्र सरकार के विधि और न्याय मंत्रालय के पास भेजा जाता है. इसके बाद केंद्र सरकार अपने आधिकारिक गैजट पर चुने हुए व्यक्ति का नाम प्रकाशित करती है.
पद ग्रहण करने से पहले उप राष्ट्रपति को राष्ट्रपति के सामने या राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त व्यक्ति के सामने शपथ लेनी होती है. उप राष्ट्रपति अपने पद से इस्तीफा देना चाहे तो उसे राष्ट्रपति के पास अपना त्यागपत्र भेजना होता है. राष्ट्रपति के स्वीकार किए जाने के बाद ही इस्तीफ़ा प्रभावी होता है.
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चुनाव आयोग ने उप राष्ट्रपति चुनाव के लिए तारीख़ का ऐलान कर दिया है. 5 अगस्त को मतदान होगा और नतीजा भी इसी दिन घोषित कर दिया जाएगा. अभी तक न तो एनडीए ने इस पद के लिए अपने उम्मीदवार का नाम घोषित किया है और न ही विपक्ष ने.
ग़ौरतलब है कि मौजूदा उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी का दूसरा कार्यकाल 10 अगस्त को ख़त्म हो रहा है.
*क्या हैं उपराष्ट्रपति की ज़िम्मेदारियां*
यह चुनाव इसलिए अहम है क्योंकि उप राष्ट्रपति राज्यसभा का सभापति भी होता है. संविधान में उपराष्ट्रपति को मुख्य ज़िम्मेदारी यही दी गई है.
इसके अलावा भी कुछ भूमिकाएं भी हैं जिनका निर्वहन उप राष्ट्रपति को करना होता है. अगर राष्ट्रपति का पद किसी वजह से ख़ाली हो जाए तो यह ज़िम्मेदारी उप राष्ट्रपति को ही निभानी पड़ती है क्योंकि राष्ट्रप्रमुख के पद को ख़ाली नहीं रखा जा सकता.
पदक्रम के आधार पर देखें तो उप राष्ट्रपति का पद राष्ट्रपति से नीचे और प्रधानमंत्री से ऊपर होता है. उप राष्ट्रपति विदेश दौरों पर भी जाते हैं ताकि अन्य देशों के साथ कूटनीतिक रिश्ते मज़बूत किए जा सकें.
*क्या है चुनाव की प्रक्रिया*
उप राष्ट्रपति का चुनाव परोक्ष होता है जिसके निर्वाचक मंडल यानी इलेक्टोरल कॉलेज में राज्यसभा और लोकसभा के सांसद शामिल होते हैं. राष्ट्रपति चुनाव में चुने हुए सांसदों के साथ विधायक भी मतदान करते हैं लेकिन उप राष्ट्रपति चुनाव में लोकसभा और राज्यसभा के सांसद ही वोट डाल सकते है.
ख़ास बात यह है कि दोनों सदनों के लिए मनोनीत सांसद राष्ट्रपति चुनाव में मतदान नहीं कर सकते लेकिन वे उप राष्ट्रपति चुनाव में वोटिंग कर सकते हैं. इस तरह से देखा जाए तो उप राष्ट्रपति चुनाव में दोनों सदनों के 790 निर्वाचक हिस्सा लेंगे.
*राज्यसभा*
चुने हुए सदस्य: 233, मनोनीत सदस्य: 12
*लोक सभा*
चुने हुए सदस्य: 543, मनोनीत सदस्य: 2
कुल निर्वाचक: 790
उप राष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा हो जाने के 60 दिनों के अंदर चुनाव कराना ज़रूरी होता है. इसके लिए चुनाव आयोग एक निर्वाचन अधिकारी नियुक्त करता है जो मुख्यत: किसी एक सदन का सेक्रेटरी जनरल होता है.
निर्वाचन अधिकारी चुनाव को लेकर पब्लिक नोट जारी करता है और उम्मीदवारों से नामांकन मंगवाता है. उप राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवार के पास 20 प्रस्तावक और कम से कम 20 अन्य अनुमोदक होने चाहिए.
प्रस्तावक और अनुमोदक राज्यसभा और लोकसभा के सदस्य ही हो सकते है. उम्मीदवार को 15000 रुपए भी जमा कराने होते हैं. इसके बाद निर्वाचन अधिकारी नामांकन पत्रों की जांच करता है और योग्य उम्मीदवारों के नाम बैलट में शामिल किए जाते हैं.
*योग्यता*
कोई व्यक्ति भारत का उप राष्ट्रपति चुने जाने के लिए तभी योग्य होगा जब वह कुछ शर्तों को पूरा करता हो. जैसे, वह भारत का नागरिक होना चाहिए, उम्र 35 साल से कम नहीं होनी चाहिए और वह राज्यसभा के लिए चुने जाने की योग्यताओं को पूरा करता हो.
अगर कोई भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन कोई लाभ का पद रखता है तो वह उप राष्ट्रपति चुने जाने के योग्य नहीं होगा. अगर संसद के किसी सदन या राज्य विधानमंडल का कोई सदस्य उपराष्ट्रपति चुन लिया जाता है तो यह समझा जाता है कि उन्होंने उपराष्ट्रपति का पद ग्रहण करते ही अपना पिछला स्थान ख़ाली कर दिया है.
*चुनाव की प्रक्रिया*
उप राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव इलेक्शन अनुपातिक प्रतिनिधि पद्धति (proportional representation) से किया जाता है. इसमें वोटिंग खास तरीके से होती है जिसे सिंगल ट्रांसफ़रेबल वोट सिस्टम कहते हैं. इसमें मतदाता को वोट तो एक ही देना होता है मगर उसे अपनी पसंद के आधार पर प्राथमिकता तय करनी होती है. वह बैलट पेपर पर मौजूद उम्मीदवारों में अपनी पहली पसंद को 1, दूसरी पसंद को 2 और इसी तरह से आगे की प्राथमिकता देता है.
*ऐसे होती है वोटों की गिनती*
सबसे पहले यह देखा जाता है कि सभी उम्मीदवारों को पहली प्राथमिकता वाले कितने वोट मिले हैं. फिर सभी को मिले पहली प्राथमिकता वाले वोटों को जोड़ा जाता है. कुल संख्या को 2 से भाग किया जाता है और भागफल में 1 जोड़ दिया जाता है. अब जो संख्या मिलती है उसे वह कोटा माना जाता है जो किसी उम्मीदवार को काउंटिंग में बने रहने के लिए ज़रूरी है.
अगर पहली गिनती में ही कोई कैंडिडेट जीत के लिए ज़रूरी कोटे के बराबर या इससे ज़्यादा वोट हासिल कर लेता है तो उसे विजयी घोषित कर दिया जाता है. अगर ऐसा न हो पाए तो प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाती है. सबसे पहले उस उम्मीदवार को चुनाव की रेस से बाहर किया जाता है जिसे पहली गिनती में सबसे कम वोट मिले हों.
लेकिन उसे पहली प्राथमिकता देने वाले वोटों में यह देखा जाता है कि दूसरी प्राथमिकता किसे दी गई है. फिर दूसरी प्राथमिकता वाले ये वोट अन्य उम्मीदवारों के ख़ाते में ट्रांसफर कर दिए जाते हैं. इन वोटों के मिल जाने से अगर किसी उम्मीदवार के मत कोटे वाली संख्या के बराबर या ज़्यादा हो जाएं तो उस उम्मीदवार को विजयी घोषित कर दिया जाता है.
अगर दूसरे राउंड के अंत में भी कोई कैंडिडेट न चुना जाए तो प्रक्रिया जारी रहती है. सबसे कम वोट पाने वाले कैंडिडेट को बाहर कर दिया जाता है. उसे पहली प्राथमिकता देने वाले बैलट पेपर्स और उसे दूसरी काउंटिंग के दौरान मिले बैलट पेपर्स की फिर से जांच की जाती है और देखा जाता है कि उनमें अगली प्राथमिकता किसे दी गई है.
फिर उस प्राथमिकता को संबंधित उम्मीदवारों को ट्रांसफ़र किया जाता है. यह प्रक्रिया जारी रहती है और सबसे कम वोट पाने वाले उम्मीदवारों को तब तक बाहर किया जाता रहेगा जब तक किसी एक उम्मीदवार को मिलने वाले वोटों की संख्या कोटे के बराबर न हो जाए.
इलेक्शन हो जाने के बाद वोटों की गिनती होती है और निर्वाचन अधिकारी नतीजे का ऐलान करता है. इसके बाद रिज़ल्ट को चुनाव आयोग और केंद्र सरकार के विधि और न्याय मंत्रालय के पास भेजा जाता है. इसके बाद केंद्र सरकार अपने आधिकारिक गैजट पर चुने हुए व्यक्ति का नाम प्रकाशित करती है.
पद ग्रहण करने से पहले उप राष्ट्रपति को राष्ट्रपति के सामने या राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त व्यक्ति के सामने शपथ लेनी होती है. उप राष्ट्रपति अपने पद से इस्तीफा देना चाहे तो उसे राष्ट्रपति के पास अपना त्यागपत्र भेजना होता है. राष्ट्रपति के स्वीकार किए जाने के बाद ही इस्तीफ़ा प्रभावी होता है.
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